नहीं रहे बाबा, श्रद्धालुओं में शोक की लहर
रूण-अपने आचरण से सीख देकर जीव मात्र के कल्याण की बात कहते हुए समस्त जीवन को गोहितार्थ समर्पित कर देने वाले परमहंस संत रूपा बाबा ने शुक्रवार 14 अप्रेल को अंतिम सांस तक राम नाम सुमिरण करते हुए देह त्याग किया।
शनिवार को हजारों भक्तों ने गाजे-बाजे के साथ अंतिम संस्कार किया।शिष्य भँवरलालकासणियां बताते हैं कि 13 वर्ष की आयु में गृहत्याग के बाद दाता श्री ने सारे जीवन को *परोपकारार्थम् इदम् शरीरम्* वाली बात को साकार करते हुए गोहितार्थ समर्पित कर दिया।आकला (खींवसर ) में हरिराम ज्याणी के घर सम्वत् 1991 में जन्म लेकर मारवाड़ की धरा पर भक्ति सरिता बहाकर सान्निध्य प्राप्त जिज्ञासु जीवों को धन्य किया।दाताश्री राम नाम को महामंत्र मानते थे और शिष्य बनाकर बड़ी जमात तैयार करने में भरोसा नहीं रखते थे।गत एक सदी से केवल गाय के दूध का सेवन करते थे।दिखावा और पाखंडों से कोसों दूर रहते थे उनका मानना था कि गृहस्थ में रहकर भजन करने का मजा ही कुछ ओर है लेकिन दुनिया भ्रम भुलानी ।गृहत्याग का कारण पूछने पर बावजी कहते थे कि जब 13 वर्ष की आयु में भाई, बहन, माता-पिता आदि का असमय संसार से विदा होना एक निमित्त बना।भडाणा के संत शिक्षक सुदर्शन महाराज रुपा बाबा को अपना गुरु माना करते थे।रुपा बाबा की भाषा कबीर साहब की उलटबाँसी जैसी थी।
वे भाषा के भेद को रहस्य बनाकर रखते थे।कभी किसी चमत्कार का दावा नहीं करते और अपने को बिल्कुल छोटा मानकर नम्रता की पराकाष्ठा पर जीवन -यापन करते थे।अपने गुरु की स्मृति में स्थापित रूपम साहित्य एवं शिक्षा संस्थान मूंडवा के संरक्षक न्यायमूर्ति बलदेव राम चौधरी,प्रो.रामबक्ष जाट,डॉ राजेश बुगासरा,जयराम सिंवर,राकेश चौधरी,भरत पाल शेखावत,गजराज कंवर,धर्मेन्द्र कासणियां,लोकेश मुंडेल,भगवती कंवर,सुमन चौधरी,सुनीता चौधरी,कविता,परी भंडारी,मैना,श्याम फिडौदा,दीपक वैष्णव, रामुराम खोजा,रामरतन सिंवर,कंवरी लाल जेठू,महबूब तगाला,ख्वाजा हुसैन भाटी,हनुमान राम ईनाणियां,सुखराम ईनाणियां,रहमान देवडा,डॉ कालु खाँ देशवाली और साहित्यकार राकेश मुथा ने गुरुदेव को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रतिवर्ष गुरुदेव की पुण्य तिथि पर एक साहित्यिक पुरस्कार की घोषणा भी जो कि बाल साहित्य लेखक को दिया जाएगा।संस्थापक भँवरलाल कासणियां ने बताया कि गुरुदेव की स्मृति में कृत सद्कर्म ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी क्योंकि वे स्वयं गीता ही थे।उनका हर कर्म गीता था।
1 thought on “परमहँस संत रुपा बाबा की देह पंचतत्व में विलीन”
उय्युज