मधुप्रकाश लड्ढा, राजसमंद।
**कांग्रेस अपने घटक दलों के साथ या यूं कहिए 23 बेसाखियों के सहारे अपनी पुरानी इमारत को नया रंग – रूप देने की चेष्टा तो कर रही है लेकिन इमारत की दीवारों में लगी दीमक का इलाज नहीं ढूंढ पा रही है। सत्ता को पाने की बेताबी साफ जलक रही है लेकिन रास्ता नहीं खोज पा रही है।
एनडीए से लोहा लेने के लिए अपनी पुरानी एंबेसडर कार का नाम बदल कर इंडिया तो कर दिया लेकिन कार का न इंजन बदल पाए, न इंजन का हॉर्स पावर बढ़ा पाए। देशी बंदूक को एके – 47 नाम दे देने से मारक क्षमता में वृद्धि नहीं होती। कांग्रेस ने सही समय पर सही निर्णय लेकर अपने बुजुर्गों को पेंशन देते हुए सत्ता की चाबी युवाओं को सौंप दी होती तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता।
कांग्रेस ने कुनबा भी जोड़ दिया और नाम भी बदल दिया लेकिन इंडिया और भारत के भावों में फर्क को नहीं समझ पाए। जो सुकून, अपनत्व और आकर्षण भारत में है, वो इंडिया शब्द में केसे मिल सकता है ? प्राचीन भारत में अंग्रेजी भाषा का चलन नहीं था, तब इंडिया शब्द भी नहीं था। अंग्रेजों के आगमन और भारत को उपनिवेश बनाए जाने के पश्चात ही भारत का अंग्रेजी नामकरण हुआ।
में कांग्रेस सहित सभी विपक्षी घटक दलों को साधुवाद भी देना चाहता हूं की वोट बैंक की राजनीति को परे रखते हुए उन्होंने अपने कुनबे का नाम इंडिया रखा, मुगल नहीं। वर्ना भाजपा का काम और भी आसान हो जाता।
कांग्रेस और उसके घटक दलों ने यूपीए का नाम इंडिया करके जनता को नई चर्चा का विषय दे दिया। एनडीए और इंडिया में रोचक मुकाबला हो, शायद यही सोचकर नाम बदला गया होगा लेकिन ऐसे राजनीतिक अवसर को भुनाने में माहिर भाजपा इस अवसर को कैसे भारत बनाम इंडिया में बदलती है यह रोचक और देखने वाली बात होगी। राजनीतिक रूप से पलड़ा किसका भारी होगा यह तो भविष्य ही बताएगा।
एनडीए और इंडिया में सबसे बड़ा फर्क सेनापति का है। एनडीए की सेना का सैनापति पीएम मोदी जैसा व्यक्ति है लेकिन सेनापति विहीन कांग्रेस की इंडिया में मजबूरी में भर्ती किए गए ऐसे महत्त्वाकांक्षी नेता है जिनकी सबकी अपनी डफली और अपन राग है। किस प्रदेश में किसकी डफली बजेगी और कौनसा राग चलेगा यह उनको भी नहीं मालूम। देखते हैं तराजू में मेंढक तोलने की हिम्मत किसमें है और कौन आगे आकर तराजू पकड़ता है ?
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