पत्रकार बाबूलाल सैनी
चुनाव लोकसभा के हो या विधानसभा के सियासत से जुड़े लोग स्वयं को स्थापित करने के लिए अपनी दावेदारी को प्रमुखता व मजबूती के साथ रखने का प्रयास करते है इसके लिए फिल्ड में सक्रिय रहने के साथ साथ जनता के सुख दुःख में भी शरीक होते है तथा 5 साल तक के लिए काफी कुछ खर्च करते है। पार्टी का सर्वे हो या अन्य एजेंसियों के सर्वे सभी में बने रह सकें इसके लिए हर जतन करते है। इतना सब कुछ करने के बावजूद भी कतिपय कारणों से टिकट नहीं मिल पाती है । ऐसे में समर्थकों के निराश व हताश होना भी लाजिमी है । शुरूआती दौर में विरोध का बिगुल भी बजता है। लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनती है कि न चाहते हुए भी साथ खड़ा होना पड़ता है। और चुनाव प्रचार का हिस्सा बनना भी पड़ता है। लेकिन जो टीस व पीडा प्रत्याशी व समर्थकों के मन में रहती है। ऐसे में समर्थक सोचते हैं कि भविष्य में अपने नेता की दावेदारी रहेगी या ब्रेक लग जाएगा। यह पशोपेश जिस क्षेत्र में होगा वहां भीतरघात की संभावना अधिक होगी तथा इस बार नहीं तो अगली बार सही दावेदारी तो रहेगी।
प्रदेश के कई विधानसभा क्षेत्रों में भी यह स्थिति भी उभर कर सामने आ रही है। जहां पिछले काफी समय से फिल्ड में रहकर विधायकी की तैयारी कर रहे दावेदारों को ऐन वक्त पर टिकट से वंचित होना पड़ता तथा कतिपय कारणों से ऐन वक्त पर टिकट किसी ओर को मिल जाती है। ऐसे में दावेदारी करने वाले व उनके समर्थकों के सामने एक ही प्रश्न होता है आगे दावेदारी रहेगी या ब्रेक लगेगा। दावेदारी रखने के लिए भीतरघात का सहारा ले या फिर बगावत करके निर्दलीय चुनाव लड़कर अपनी भविष्य की दावेदारी को बनाए रखे या फिर ब्रेक । ब्रेक लगने पर भविष्य में पंचायत राज या पालिका की पालिटिक्स का हिस्सा बनना और यदि ब्रेक नहीं लेने पर भीतरघात का सहारा लेना पड़ता है। ऐसी स्थिति भी चुनाव में सामने आती रही है। सीकर संभाग की बात करें तो खंडेला, फतेहपुर, सीकर सहित विधानसभा क्षेत्र है जहां खुली बगावत हुईं हैं। वहीं कुछ विधानसभा क्षेत्रों में भीतरघात की संभावना मानी जा रही है। ताकि भविष्य की पोलिटिक्स पर ब्रेक लगने की बजाय दावेदारी की मजबूती बनी रह सकें।
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 दावेदारों की उम्मीद रहेगी बरकरार या लगेगा ब्रेक
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