पहले रश्मिका मंदाना, फिर कैटरीना कैफ और काजोल का डीपफेक वीडियो आने के बाद चिंता बढ़ी है. केंद्र सरकार अब एक्शन में है. आईटी मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव ने ऐसे डीपफेक वीडियोज को लोकतंत्र के खतरा बताया है. उनका कहना है कि सरकार अगले 10 दिन के अंदर इसको लेकर कानून लाएगी. ऐसे डीपफेक वीडियो को अपलोड करने वाले और इसकी मौजूदगी वाले प्लेटफॉर्म, दोनों पर जुर्माना लगेगा. पिछले हफ्ते पीएम नरेन्द्र मोदी ने डीपफेक वीडियो को लेकर लोगों को आगाह किया. अब इसके लिए कानून लाने की चर्चा है. एक बात साफ है कि इंटरनेट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सीधे तौर शिकंजा कसा जाएगा क्योंकि इन वीडियोज को वायरल करने में सबसे बड़ा रोल इनका ही होता है.
भारत अकेला देश नहीं जहां इसको लेकर कानून की बनाने की तैयारी है. चीन में पहले ही इसको लेकर कानून बनाया जा चुका है और यूरोपीय देशों में भी इसकी गाइडलाइन पर कानूनी मुहर लगाने की कोशिश हो रही है.
कैसा है डीप फेक पर बना चीन का कानून?
चीन ने पिछले साल डीप फेक पर कानून लाने की घोषणा की थी. अपनी घोषणा में कहा था कि इसको लेकर बनाया गया कानून 10 जनवरी 2023 से लागू होगा. इस कानून में क्या-क्या बातें कही गई थीं, अब इसे भी समझ लेते हैं.
चीन ने डीप फेक को लेकर जो नियम बनाए उसमें साफ कहा गया है कि ऐसी तकनीक से अगर कोई वीडियो बनाया जाता है तो जिसका वीडियो है उसकी अनुमति जरूर लेनी होगी. किसी भी तरह की फेक खबरें फैलाने के लिए डीप फेक तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा.
अगर उनका कंटेंट वर्तमान नियमों के विरुद्ध होता है या फिर देश की की सुरक्षा में किसी तरह की बाधा पहुंचाता है या अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाता है तो कार्रवाई की जाएगी. चीन में इन नियमों का पालन हो सके, इसकी निगरानी चीन का सायबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन करता है.
इससे पहले चीन में डाटा प्रोटेक्शन पर भी बिल लाया गया था. इसके साथ ही 2022 की शुरुआत में तकनीक को लेकर एक और कानून बनाया गया, जिसमें साफतौर पर कहा गया था कि तकनीक से जुड़ी फर्म अल्गोरिदम का इस्तेमाल करेंगी.
क्या है यूरोपीय यूनियन की तैयारी?
पिछले कुछ समय से डीप फेक वीडियो दुनिया के कई देशों के लिए परेशानी बने हुए हैं. चीन ने इस पर गाडनलाइन बनाई. इसके बाद यूरोपियन यूनियन ने ऐसा कानून का प्रस्ताव रखा जिसमें सोशल मीडिया कंपनियों ने अपने प्लेटफॉर्म से ऐसे वीडियो को हटाने के लिए कहा जा सके. इसके अलावा ऐसी जानकारियां हटाई जाएं जो भ्रमित करने का काम कर रही हैं. यानी सतही तौर पर सोशल मीडिया कंपनियों पर शिकंजा कसने की बात कही गई है.
कैसे बन जाते हैं ये डीपफेक वीडियो?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग की मदद से किसी एक इंसान के चेहरे पर दूसरे इंसान का चेहरा ऐसे फिट किया जाता है कि वो उसका ओरिजनल वीडियो लगने लगता है. इसमें ऑडियो और वीडियो को इस तरह मैच किया जाता है कि पहचानना मुश्किल हो जाता है कि वीडियो उसी शख्स का है या किसी दूसरे शख्स के वीडियो के साथ छेड़छाड़ की गई है.
इसके पीछे कोडर और डीकोडर तकनीक काम करती है. डिकोडर पहले ओरिजनल वीडियो में मौजूद इंसान के चेहरे को रीड करता है फिर उसके चेहरे पर फर्जी फेस लगा देता है. वीडियो में उस इंसान के हावभाव और हरकतों पर बारीकी से नजर रखते हैं तो कुछ हद तक यह पता लगाया जा सकता है वीडियो असली है या नकली. हालांकि, इसमें अंतर कर पाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है.