नाथद्वारा वल्लभ कुल दीपक आधुनिक विकास के प्रणेता चिरंजीव युवराज विशाल बावा साहब ने आज अपने छोटे तातजी, विद्वत केसरी, परम सेवा रसिक महानुभाव नि. ली. गो. श्री १०८ श्री दामोदरलालजी महाराज के उत्सव की मंगल बधाई दी साथ ही आप ने बताया कि आप श्री गोवर्धनलालजी महाराज के पुत्र थे एवं आप का जन्म विक्रम संवत १९५३ में आज के दिन नाथद्वारा में हुआ था. आप धीर, वीर, गंभीर, विद्यासुधाकर, सकल कला निधि, अति सुन्दर, विमानचालक, उत्तम साहित्यकार एवं विनोदी स्वाभाव के थे। आपश्री एक महान वक्ता भी थे।
श्री अखिल भारतवर्षीय वर्णाश्रमस्वराज्यसंघ के चतुर्थ महाअधिवेशन में आपश्री का वक्तव्य आज भी विद्वत समाज द्वारा अविस्मरणीय है।आपश्री को श्री सुबोधजी में महारत हासिल थी। आपश्री के वचनामृत सुनकर जीव मंत्रमुग्ध हो जाते थे, फिर भी, उन्होंने अपने वचनामृतों को विशेष अवसरों तक ही सीमित कर रखा था।श्री दामोदरलालजी महाराज, अपने समय में क्रिकेट खेल के पारंगत खिलाड़ियों में से एक थे। उस तथ्य ने अकेले ही मुझे आपश्री की ओर खींचा। तत्पश्चात् मैंने आपश्री के बारे में और जानने का प्रयत्न किया प्रभु सेवा में भी आपकी रूचि बहुत थी. आपने सदैव श्रीजी – श्री नवनीतप्रियाजी को विविध प्रकार की भोग-राग-श्रृंगार की सेवा कर रिझाया. मार्गशीर्ष मास में होने वाले पाछली रात का श्रृंगार, दूज के चंदा का श्रृंगार, ऊष्णकाल के मोती के श्रृंगार प्रभु को धरने आपने ही आरम्भ किये थे.
आपके ही आग्रह पर शीत ऋतु में होने वाली घटाओं को 4 से बढ़ाकर 12 किया गया.बसंत व डोल के प्रतिनिधि के श्रृंगार आपके अनुग्रह पर आरम्भ हुए थे.
ठाकुरजी में गणगौर महोत्सव की शुरुआत भी आपने ही की थी। आप श्री गुसांईजी की चौदहवीं पीढ़ी के तिलकायत थे. आपकी दयालुता, व्यवहार कुशलता, अपूर्व त्याग, न्याय-रक्षता आदि सर्वविदित हैं. अपने जीवन के उत्तरोतर काल में धर्म हेतु आपने श्रीजी की अतुल्य संपत्ति एवं तिलकायत पद का त्याग कर उदयपुर (तत्कालीन मेवाड़) में निवास किया. विक्रम संवत २००२ में आपने नित्यलीला में प्रवेश किया.