गांवो में आज भी कायम है परंपरा बही भाट की, कोर्ट कचहरी में भी माना जाता है इसका सबूत

रूण फखरुद्दीन खोखर


रूण-गांव रूण में इन दिनों बही भाट की परंपरा को निभाते हुए मुस्लिम समाज में इन दिनों भाट राजा आए हुए हैं। हिंदू समाज में इनको राव साहब कहते हैं ,वहीं मुस्लिम समाज में इनको भाट राजा कहते हैं लेकिन दोनों का काम एक ही होता है ।

इसके तहत ग्रामीण अपने परिजनों की पुरानी याद ताजा करने के साथ ही इस बही में नए सदस्यों के नाम लिखवाते हैं ,इतना ही नहीं ग्रामीणों और परिवार वालों की मौजूदगी में अपने घरों में भाट से बही का वाचन करवाकर पुरानी जानकारी हासिल करके खुश होते हैं। गांव में भाट राजा अपने यजमानों के यहां लगभग पांच या 7 साल के बाद आते रहते हैं वहीं भाट के घर परिवार में पहुंचने पर परिवार के सदस्य संबंधी एकत्र होकर पूर्वजों के नाम और उनके बारे में सारी जानकारी सुनकर खुश होते हैं,

कई परिवारों को यह जानकारी भी इन बहियों में लिखे विवरण से मिलती हैं कि उनके पूर्वज (भडेरा) देश या प्रदेश के किस स्थान से आकर इस गांव में बसे थे और उनके गोत्र के अन्य सदस्य अब देश में कहाँ-कहाँ पर वर्तमान में बसे हुए हैं, इससे वर्षों पुराने बिछड़े परिवारों के मिलने में भी भाट की बहीं सहायक सिद्ध होती है। डीडवाना के भाट राजा मोहम्मद फुरकान और मइनुद्दीन ने बताया की इन बहियों में आज भी स्याही वाले पेन से ही लिखने को प्राथमिकता दी जाती है, ताकि लिखावट वर्षों तक रहें, इसी प्रकार कोई भी गलत जानकारी नहीं लिखी जाती हैं, इसका विशेष तौर से ध्यान रखा जाता है इसीलिए आज भी बही पर विश्वास किया जाता है। बही वाचन के दौरान यजमान अपने बही लिखने वाले भाट को नए सदस्यों के नाम, पद, उपाधि सहित अन्य विवरण लिखवाकर दान दक्षिणा,ईनाम,भेंट और कपड़ो के साथ-साथ भोज भी देते हैं और फूल माला पहनाकर घरों से विदा करते हैं।



*यह है बही भाट*

सैकड़ो वर्षों से चली आ रही परंपरा के तहत हर जाति, संप्रदाय और धर्म के अलग-अलग बही भाट होते हैं इन्हें कई लोग रावजी से कई भाट राजा के नाम से संबोधित करते हैं, लेकिन होते दोनों एक ही हैं। यह बहीयां 30 से 50 किलो वजनी  वर्षों पुरानी और दुर्लभ होती हैं, जिनको लेकर भाट पहुंचते हैं और पूर्वजों के नाम और व्यवसाय से संबंधित लेखा-जोखा बहियों से सुनाते हैं। गांव रूण के मो.उस्मान खोखर, सैयद अनवरअली पांडू, उपसरपंच सलमान सांई, शौकतअली खोखर, हाजी अनवरअली, नूरमोहम्मद राठौड़, फखरुद्दीन धर्मकांटा, सैयद नूरबाबा, हाजी मो.लुकमान, हाजी मो.सदीक और फखरुद्दीन खोखर ने बताया यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है जिसको आज भी कायम रखा जा रहा है।



*राजकाज में आज भी है बही की मान्यता*

किसी भी धर्म में कोर्ट कचहरी, राज काज या सामाजिक कार्यों,गोदनामा में जब भी किसी शख्स का काम अटकता है तो वहां पर सबूत के तौर पर आज भी भाट या राव की बही में लिखे पुराने विवरण को मान्यता दी जाती है, आजकल जमीन जायदाद के मालिकाना हक को लेकर भी विवाद होता है तो भाट की बही से समस्या का समाधान के प्रयास किए जाते हैं।

Aapno City News
Author: Aapno City News

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