रूण फखरुद्दीन खोखर
रमजान के आखिरी जुमे की नमाज में उमड़े नमाजी
रूण-बरकतों का महीना रमजान मुबारक अंतिम चरण में चल रहा है इसी कड़ी में जुम्मातुल विदा यानी आखिरी जुम्मा के दिन गांव रूण, रिया श्यामदास सहित आसपास की गांवों की मस्जिदों में अकीदत के साथ नमाज अदा की गई ,तपिश व गर्मी के बावजूद इस महीने के आखिरी जुमे के दिन सामूहिक नमाज में सभी मस्जिदों में रोजेदारों और नमाजीयों की भीड़ नजर आई और आखिरी जुमे में ढेर सारी दुआएं मांगी गई और इसके साथ ही अब ईद की तैयारी भी शुरू हो गई है ।
इस मौके पर अशरफी जामा मस्जिद के पैश इमाम मौलाना मोहम्मद राशिद ने कहा कि हर मस्जिद में रमजान के आखिरी 10 दिनों में दुनिया के काम छोड़कर कई बंदे एतकाफ में बैठते हैं एतकाफ का मतलब होता है दुनिया के काम छोड़कर मस्जिद में बैठकर एकांत में इबादत यानी खुदा की उपासना करना इसमें बंदे 10 दिन तक मस्जिद में बैठकर अल्लाह को याद करके रोजे रखकर और नमाजे पढ़कर इबादत (उपासना) करते हैं और ईद का चांद नजर आने पर ही वापस इनको मोहल्ले वाशियो द्वारा फूल माला,साफा पहनाकर उनके घरों तक पहुंचाया जाता है,
इन्होंने बताया कि अगर गांव की मस्जिद में अगर एक भी बंदा एतकाफ में बैठ जाता है तो उस गांव या शहर की कोई भी प्राकृतिक आपदा,अनहोनी या बला टल जाती है और उस गांव या शहर पर खुशहाली की लहर आ जाती है, इसी कड़ी में गांव रूण की चार मस्जिदों में लगभग 20 से ज्यादा बंदों ने एतकाफ में बैठने के लिए भाग लिया है और वहां बैठकर अल्लाह की इबादत करके देश में अमन चैन शांति भाईचारे और अपने द्वारा किए हुए पापों से छुटकारा की विशेष दुआएं करते हैं। इन्होंने बताया मस्जिद में दुनियादारी की किसी भी प्रकार की बात करना मना फ़रमाया गया है। एतकाफ का मतलब ही होता है ठहर जाना और खुद को दुनिया के कामों से रोक लेना । इसी तरह गांव रूण की सभी मस्जिदों में नमाजियों की भीड़ रही । इस प्रकार सभी मस्जिदों में मौलाना द्वारा कहा गया है कि जिन्होंने भी इस महीने में फितरा, जकात या अपनी ओर से कुछ भी मदद देनी हो तो ईद की नमाज के पहले पहले देने पर आपको 70 गुना ज्यादा सवाब मिलेगा।