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गोवत्स द्वादशी का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया गया।  

                                                                                  संतान की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है गोवत्स द्वादशी का व्रत,                                                                                       पादूकलां।(दीपेंद्र सिंह राठौड़)        कस्बे सहित आसपास ग्राम आचंल में सोमवार को गोवत्स द्वादशी का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया गया।कौशल्या देवी ने गोवत्स द्वादशी कहानी व कथा विधिवत सुनाइए। इससे पूर्व में गौ माता की विशेष पूजा अर्चना की गई।गोवत्स द्वादशी व्रत दीपावली से ठीक दो दिन पहले मनाया जाता है तथा इस दिन गाय-बछड़े की सेवा की जाती है। इस दिन गौ माता का पूजन करने से संतान की दीर्घायु का वरदान प्राप्त किया जाता है। पद्म पुराण में दिए गए गौ माता के वर्णन के अनुसार गौ माता के मुख में चारों वेदों का निवास माना गया हैं।

कार्तिक मास को अत्यंत पवित्र माना जाता है। भगवान विष्णु के प्रिय इस मास का हर दिन एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इन्हीं उत्सवों में से एक है गोवत्स द्वादशी, जिसका उल्लेख भविष्य पुराण में भी मिलता है.गोवत्स द्वादशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स (गाय का बछड़ा) के रूप में मनाया जाता है। गोवत्स द्वादशी को नंदिनी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है।नंदिनी हिंदू धर्म में दिव्य गाय है। इस दिन गाय के बछड़े की पूजा करने का विधान है। पूजा करने के बाद उन्हें गेहूं से बना भोजन खाने को देना चाहिए। इस दिन गाय के दूध और गेहूं से बने उत्पादों का प्रयोग वर्जित है।कटे हुए फलों का सेवन नहीं करना चाहिए। गोवत्स की कथा सुनकर ब्राह्मणों को फल देना चाहिए। आइए जानते हैं गोवत्स द्वादशी की तिथि और इसका महत्व। भगवान कृष्ण बेहद प्रसन्न होते हैं और संतान की हर संकट से रक्षा करते हैं। यही नहीं निसंतान को संतान सुख का भी आशीर्वाद मिलता है। मान्यता है कि गाय में 84 लाख देवी-देवताओं का वास होता है और जो लोग गोवत्स द्वादशी पर गायों की पूजा करते हैं उन्हें सभी 84 लाख देवी-देवताओं का आशीष मिलता है।

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Author: Aapno City News

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