मित्रता हो तो कृष्ण सुदामा जैसी त्र पंडित दिनेशानंदजी महाराज सुदामा की मित्रता की कथा सुन भाव विभोर हुए श्रोता पादूकलां।(दीपेंद्र सिंह राठौड़) कस्बे के सीनियर सेकेंडरी स्कूल मार्ग पर स्थित राठौड भवन परिसर सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के सप्तम दिन दिवस पर कथावाचक पंडित दिनेशानंदजी महाराज ने कहा की मित्रता हो तो कृष्ण सुदामा जैसी होए भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा के साथ मित्रता निभाकर दुनिया को मित्रता का संदेश दिया।
उन्होंने कहा कि सातवें दिन कृष्ण के अलग.अलग लीलाओं का वर्णन किया गया। मां देवकी के कहने पर छह पुत्रों को वापस लाकर मां देवकी को वापस देना सुभद्रा हरण का आख्यान कहना एवं सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए ने बताया कि मित्रता कैसे निभाई जाए यह भगवान श्री कृष्ण सुदामा जी से समझ सकते हैं। उन्होंने कहा कि सुदामा अपनी प7ी के आग्रह पर अपने मित्र से सखा सुदामा मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे। कथावाचक पंडित कहा कि सुदामा द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर बढऩे लगे द्वार पर द्वारपालों कथावाचक पंडित दिनेशानंदजी महाराज ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हैं इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है। अपना नाम सुदामा बता रहा है जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना प्रभु सुदामा सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे सामने सुदामा सखा को देखकर उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया। सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया दोनों की ऐसी मित्रता देखकर सभा में बैठे सभी लोग अचंभित हो गए। कृष्ण सुदामा को अपने राज सिंहासन पर बैठाया हुआ। उन्हें कुबेर का धन देकर मालामाल कर दिया। जब जब भी भक्तों पर विपदा आ पड़ी है। प्रभु उनका तारण करने अवश्य आए हैं। कथा मध्य सुदामा चरित्र व की दिव्य सजीव झांकिया सजाई गई। जिससे श्रोता भाव विभोर होकर मंत्र मुग्ध हो गए।