
सुरेश सरगरा
लाम्बा जाटान में रमजान की पहली जुमा की नमाज शांतिपूर्वक संपन्न हुई। इस अवसर पर सैकड़ों नमाजियों ने इबादत की और अमन-चैन की दुआ मांगी। मौलाना बरकत अली ने रोजे के महत्व को समझाया और बताया कि नमाज की तरह रोजा रखना भी फर्ज है ।

रोजा इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है और यह हर सक्षम मुस्लिम पुरुष और महिला के लिए अनिवार्य होता है। रोजा रखने की प्रक्रिया में सहरी और इफ्तार का विशेष महत्व होता है। सहरी सुबह फज्र की अज़ान से पहले खाई जाती है, जबकि इफ्तार सूर्यास्त के बाद किया जाता है ।
रमजान के महीने को तीन भागों में विभाजित किया जाता है:
- पहला अशरा (रहमत): पहले 10 दिनों में अल्लाह की रहमत मांगी जाती है।
- दूसरा अशरा (बरकत): अगले 10 दिनों में अल्लाह से बरकत की दुआ की जाती है।
- तीसरा अशरा (मगफिरत): अंतिम 10 दिनों में अल्लाह से मगफिरत (माफी) की गुजारिश की जाती है ¹।
रमजान के अंत में शव्वाल महीने की पहली तारीख को ईद-उल-फित्र मनाई जाती है। यह दिन विशेष प्रार्थनाओं और भाईचारे के जश्न का प्रतीक होता है। इस दिन मुस्लिम समुदाय एक-दूसरे से गले मिलते हैं, मिठाइयाँ बांटते हैं और जरूरतमंदों को फितरा देकर अपनी इबादत को पूरा करते हैं ¹।


Author: Aapno City News
