


चने की फसल में कम पैदावार से किसानों को भारी नुकसान, बढ़ती महंगाई ने बढ़ाई चुनौती
भारतीय कृषि क्षेत्र में चने की फसल एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, लेकिन हाल के वर्षों में इसकी पैदावार में कमी आई है। इसके परिणामस्वरूप, किसानों को भारी नुकसान हुआ है। बढ़ती महंगाई ने भी किसानों की चुनौतियों को बढ़ा दिया है।
किसानों की समस्याएं
एक किसान ने 13 बीघा में चने की फसल लगाई थी, लेकिन कुल पैदावार मात्र 6.6 क्विंटल हुई। इससे लागत भी पूरी नहीं निकल पाई। किसान ने बताया कि 13 बीघा में चने की फसल बोई थी, जिसमें प्रति बीघा करीब 5000 रुपए खर्च हुए। खेत की तैयारी में 500 रुपए प्रति बीघा लगे। तीन बार एक किसान परिवार अपनी चने की फसल निकालते हुए। हल चलाने में 750 रुपए प्रति बीघा खर्च हुए। बीज पर 1000 रुपए प्रति बीघा, मजदूरी 1000 रुपए प्रति बीघा, दवाई का छिड़काव 300 रुपए प्रति बीघा और फसल निकालने के लिए मशीन का खर्च 300 रुपए प्रति बीघा आया। फसल पकने में करीब चार महीने लगे। यदि किसान की प्रतिदिन मजदूरी 400 रुपए मानी जाए तो चार महीने की मेहनत का मूल्य 48000 रुपए होता है। फसल घर तक लाने के लिए ट्रैक्टर का भाड़ा 400 रुपए लगा। महंगाई बढ़ रही है, लेकिन किसानों को फसल का सही दाम नहीं मिल रहा। प्रति बीघा लागत 5000 रुपए से ज्यादा बैठ रही है, लेकिन उपज के दाम उससे कम मिल रहे हैं। किसान को न तो लागत का पैसा मिल पा रहा है, न ही मेहनत का मोल। ऐसे हालात में किसान की मेहनत बेकार जा रही है।
सरकारी सहायता की कमी
किसानों की समस्याओं का एक बड़ा कारण सरकारी सहायता की कमी है। सरकार द्वारा किसानों को दी जाने वाली सहायता अक्सर अपर्याप्त होती है, जिससे किसानों को अपनी फसल की लागत तक नहीं मिल पाती है। इसके अलावा, सरकार द्वारा किसानों के लिए बनाई गई नीतियां अक्सर किसानों के हितों को ध्यान में नहीं रखती हैं।
महंगाई का प्रभाव
महंगाई का प्रभाव किसानों की आय पर भी पड़ रहा है। जब महंगाई बढ़ती है, तो किसानों को अपनी फसल के लिए अधिक पैसे देने पड़ते हैं। लेकिन जब वे अपनी फसल बेचते हैं, तो उन्हें उसका सही दाम नहीं मिलता है। इससे किसानों की आय कम हो जाती है और वे अपनी मेहनत का मोल नहीं पा सकते हैं।
निष्कर्ष
चने की फसल में कम पैदावार से किसानों को भारी नुकसान हुआ है। इसके अलावा, सरकारी सहायता की कमी और महंगाई का प्रभाव भ


Author: Aapno City News







