श्रीकृष्ण रुकमणी विवाह की सजाई गई दिव्य सजीव झांकी [बाबूलाल सैनी]पादूकलां । कस्बे के सीनियर सेकेंडरी स्कूल के सामने स्व भंवर राघवेंद्र सिंह शेखावत की स्मृति में संगीतमय भागवत कथा चल रही जिसके छठे दिन दिवस पर कथावाचक पंडित दिनेशानंदजी महाराज ने कहा कि यह संसार नश्वर है यहां कोई अजर अमर नहीं है।
जिसने जन्म लिया है उसको एक दिन अवश्य मरना पड़ेगा। इसलिए मुनष्य को अपने जीवन में सत्संग करके अपने जीवन को सुधारना चाहिए। कलयुग में भजन और कीर्तन करने से मनुष्य का उद्धार हो जाता है। क्योकि कलयुग में की गई भक्ति ही सबसे उत्तम मानी गई है। श्रद्धालुओं को सत्कर्म की महत्ता का सुन्दर वर्णन किया। मनुष्य को जीवन में अनवरत् कर्म करते हुए सच्चाई के पथ पर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
उन्होने बताया की जीवात्मा ने महारास में जैसी कामना की भगवान श्री कृष्ण ने उसे उसी रूपमे कृतार्थ किया उन्होंने कहा कि रास षुद्व में रा का तात्पर्य उल्लास से है। भगवान श्री कृष्ण की गोपियों के साथ सुंदर रासलीला का वर्णन किया। भगवान श्री कृष्ण ने भैत जनों को आनन्द की परम एवं चरम अवस्था प्रदान करने को महारास की लीला की । उद्वव चरित्र का परम एवं चरम अवस्था प्रदान करने को महारास की लीला की।
उद्वव चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि परमात्मा की प्राप्ति ज्ञान कराने को वृन्दावन मे गोपीयों के निकट जव उद्वव जी को भेजा तो गोपियों के कृश्ण प्रेम के मे गोपीयों के निकट जव उद्वव जी को भेजा तो गोपियों के कृष्ण प्रेम के आगे उनके वेदान्त्र एवं दर्षन की एकं न चली और न जाने कव उनके समग्र ज्ञान की मूदड़ी यमूना में वह गयी। और वे गोपियों की भंति ही श्री कृष्ण प्रेम मे सरावोर होकर कि कर्तव्य विमूढ से मथुरा वापस लौट गये।रूक्मणिमंगल का सरस वर्णन करते हुए कहा कि श्री कृष्ण का गुणानुवाद सुन कर रूक्मणिजी ने सुवणा भक्ति के माध्यम से श्री कृष्ण को पति रूप् में प्राप्त किया।इस अवसर पर रूक्मणिजी एवं श्री कृष्ण के मंगल परिणय की भव्य झाकी का दर्षन कर सभी त्रोता आनन्दित हो उठो कथा मे जहाँ गोपियों भगवान कृष्ण द्वारा रचाया गया रास कोई स्त्री व पुरुष का मिलन नहीं बल्कि भक्त और भगवान का मिलन है भगवान कृष्ण ने मात्र 11 वर्ष की अवस्था में ही मामा कंस सहित संपूर्ण असुरों का विनाश किया सप्तम दिवस श्रीमद् भागवत कथा के छठे दिन की कथा करते हुए भागवत कथा में भगवान कृष्ण द्वारा रचाया गया संपूर्ण गोकुल वासियों को दर्शन देते हुए अपने तात बलराम सहित मथुरा में पहुंचकर असुरों का वध किया इसमें भगवान कृष्ण ने किसी भी प्रकार की कोई अस्त्र-शस्त्र ग्रहण नहीं किया पंडित दिनेशानंद जी महाराज ने बताया कि व्यक्ति जो कर्म करता है उसका फल उसे समय अनुसार यही पृथ्वी पर ही भुगतान करना पड़ता है दुष्ट कंस के पापों का घड़ा भर गया था तो भगवान ने खेल ही खेल में दुष्ट कंस का वध किया भगवान ने अपनी माया से सबसे सुंदर नगरी द्वारिका का निर्माण किया एवं अपना राज्य प्रारंभ किया तत्पश्चात् कथा ने श्री कृष्ण की गोपियों के साथ रासलीला का सुन्दर वर्णन किया आगे कृष्ण-रूकमणी विवाह का सुन्दर चरित्र- चित्रण कियातथा विवाह कन्यादान के रूप में सभी श्रद्धालुओं को इसके पंडित दिनेशानंदजी महाराज ने भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह का सुंदर वृंतात सुनाया। जिससे श्रद्धालु भाव विभोर होकर नृत्य करने लग गए।