Sam Bahadur Review: किसी को फील्ड मार्शल की उपाधि ऐसे ही नहीं मिल जाती. सेना की 19 उपाधियों में सबसे श्रेष्ठ. उसके अंदर कुछ तो कौशल रहे होंगे. जो उसे औरों से अलग बनाते हैं. एक फौजी का कर्तव्य है इस ओहदे की गरिमा को समझना और उसी धैर्य-निष्ठा के साथ उसका पालन करना. किसी भी मैके पर इसके साथ समझौता ना करना. इसी मिजाज के साथ फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ जिए और उन्हीं के मिजाज को ओढ़ इस फिल्म में विक्की कौशल ने उन्हें हूबहू पर्दे पर उतार दिया और एक महान सोल्जर को एक बेहतरीन ट्रिब्यूट दिया. मेघना गुलजार जरूर अपने क्रॉफ्ट से भटकती नजर आईं और फिल्म को कॉमर्शियल बनाने के चक्कर में इसके साथ पूरा जस्टिस नहीं कर पाईं.
क्या है कहानी?
फील्ड मार्शल सैम होर्मसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ देश के सबसे बहादुर सोल्जर में से एक माने जाते हैं. वे देश के पहले फील्ड मार्शल थे. ये विदेश की उपाधि थी जिसकी शुरुआत उन्हें सम्मानित करने के साथ ही हुई. फिलहाल इस उपाधि को खत्म कर दिया गया है. सैम की बात करें तो पहले उन्होंने ब्रिटिश सेना के लिए सर्व किया और फिर आजादी के बाद वे भारतीय सेना का अभिन्न हिस्सा बन गए. वे एक बहादुर सैनिक थे इसलिए उनका नाम सैम बहादुर पड़ा. उन्हीं के पूरे करियर, पॉलिटिकल अफेयर और पर्सनल लाइफ को शामिल करते हुए ये बायोपिक बनाई गई है.
कैसा है डायरेक्शन?
फिल्म का डायरेक्शन मेघना गुलजार ने किया है. गुलजार पहले तलवार, राजी और छपाक जैसी फिल्में बना चुकी हैं. उनकी पहली पॉपुलर फिल्म तलवार को पसंद किया गया. इसके बाद आलिया भट्ट के साथ आई उनकी फिल्म राजी ने उनके करियर में निखार ला दी. फिल्म को फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला. इसके बाद उनकी फिल्म छपाक भले ही अनफॉर्चुनेटली अजेंडे के लपेटे में आ गई लेकिन इसके बाद भी फिल्म की क्रिटिक्स ने तारीफ की. लेकिन इस फिल्म के साथ मेघना गुलजार पूरी तरह से इंसाफ नहीं कर पाई हैं.
उनके पिता गुलजार साहेब ने अपने समय में आंधी फिल्म बनाई थी. उसे विवादित रूप से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन में बनी फिल्म माना जाता है. क्योंकि उसमें सुचित्रा सेन के किरदार में इंदिरा गांधी की सशक्त छवि नजर आती है. वो किसी रिफ्रेंस के तौर पर भी ली गई हो सकती है. लेकिन इस फिल्म में इंदिरा गांधी के रोल को ठीक तरह से प्ले नहीं किया गया है. ऐसा दिखाया गया है जैसे वे हर बात के लिए आसानी से राजी हो जाती थीं. लेकिन ऐसा नहीं था. वे एक स्ट्रॉन्ग नेता थीं और बहुत सोच समझ कर फैसला लेती थीं. इंदिरा गांधी संग मानेकशॉ के तनावपूर्ण रिश्तों को दिखाया गया है जो फिल्म में थोड़ी रोचकता पैदा जरूर करता है.
कहां हो गई चूक?
लेकिन फिल्म सैम मानेकशॉ की पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ पर थी. ना तो उनके बचपन को ठीक तरह से दिखाया गया, ना उनकी तरबियत को और ना तो उनकी जवानी के हसीन किस्से. एक सख्त सोल्जर के रोमांस को फिल्म में महज दो मिनट देना ये दर्शाता है कि फिल्म का स्क्रीनप्ले कितना कमजोर है. फिल्म में बार-बार ये कहा गया कि सैम मानेकशॉ का सेंस ऑफ ह्यूमर बहुत शानदार था लेकिन ऐसे ज्यादा सीन्स देखने को मिले नहीं. हां उनके डायलॉग्स अच्छे लिखे गए थे.
फिल्म इंटरवल तक तो किसी मामुली सी डॉक्युमेंट्री सरीखी थी.लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म ग्रिप पकड़ती है. जंग के मैदान को भी बड़ी फॉर्मेलिटी सा दिखाया गया है. जंग को और विस्तार से दिखाया जा सकता था. कुल मिलाकर मेघना गुलजार के निर्देशन में बैलेंस नजर नहीं आया है. ये एक अच्छी कहानी थी. इसे वे अगर एक वेब सीरीज के रूप में पेश करतीं तो देश के पहले फील्ड मार्शल सैम बहादुर के चाहनेवालों के लिए ये दोगुनी खुशी की बात होती. बाकी मेघना गुलजार एक शानदार डायरेक्टर हैं. वे संवेदनशीलता के साथ और पूरी जिम्मेदारी के साथ फिल्म बनाती हैं.
कैसी है कास्टिंग और एक्टिंग?
फिल्म में विक्की कौशल, सान्या मल्होत्रा और फातिमा सना शेख लीड रोल में हैं. इसके अलावा कोई बहुत बड़ा या पॉपुलर चेहरा फिल्म में नहीं है. फिल्म में नेहरू, सरदार पटेल और जिन्ना जैसे किरदारों को दिखाया गया था. लेकिन कोई भी किरदार ठीक तरह से कैरेक्टर के औरे को मैच नहीं कर रहा था. इंदिरा गांधी के रोल में फातिमा सना शेख भी ठीक ही लगीं.
किरदार की आत्मा ओढ़ कर आए विक्की कौशल
विक्की कौशल आज इंडस्ट्री के उन एक्टर्स में से हैं जो किरदार के साथ पूरा जस्टिस करते हैं. इस फिल्म में उन्हें विक्की कौशल ना होकर सैम मानेकशॉ होना था. वे शुरू से ही सैम मानेकशॉ होकर आए थे. उन्हें इस किरदार के दौरान खुद से विक्की कौशल को पूरी तरह से अलग कर दिया था. वो किरदार में खो गए थे. वो किरदार के हो गए थे. वे एक्टिंग को इस अंदाज से करते हैं कि उसे अलग मुकाम मिल जाता है. सैम के रोल में विक्की परफेक्ट थे. उनके डायलॉग्स भी अच्छे थे और फिल्म की लेंथ की करीब 70 पर्सेंट स्पेस में तो वही थे. ऐसे में उन्होंने अपना काम बेखूबी किया. अगर ये वेब सीरीज होती तो निसंदेह ये सैम के दीवानों के लिए एक बड़ी ट्रीट होती.
देखें कि नहीं ?
वैसे तो एनिमल फिल्म के लिए पहले ही एक जमात तैयार है. लेकिन एनिमल बाप-बेटे के एक टॉक्सिक रिश्ते की कहानी है. एनिमल में भी फाइटिंग सीन्स है लेकिन शोबाजी वाले. सैम मानेकशॉ देश के नेशनल हीरो हैं. उनकी बायोपिक ना देख पाना देशवासियों का दुर्भाग्य होगा. फाइटिंग सीन इसमें भी है. लेकिन ये देश की आजादी के बाद सेना के गौरव और उस गौरव की गाथा लिखने वाले सबसे गौरवशाली जवान सैम मानेकशॉ की कहानी है. और यही बात इस फिल्म को सबसे स्पेशल बनाती है.