अपनी विरासत /धरोहर अब विद्यार्थियों को दिखाए जाएंगे प्रदेश के पैनोरमा,

जाने स्मारक और संग्रहालय
लोक देवी देवताओं, संत महापुरुषों एवं स्वतंत्रता संग्राम की गौरवशाली गाथा से रूबरू होंगे विद्यार्थी
राज्य में स्थित सांस्कृतिक विरासत, ऐतिहासिक धरोहरों के साथ वीर योद्धाओं की जीवनी देखकर विद्यार्थी लाभान्वित होंगे ,राज्य का गौरवशाली इतिहास, संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहरों की जानकारी मुहैया कराने के उद्देश्य से विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण के तहत स्मारक, पैनोरमा और संग्रहालय दिखाए जाएंगे।



मेड़ता ।राजस्थान धरोहर प्राधिकरण की ओर से राज्य के विभिन्न जिलों में लोक देवी देवताओं, संत महात्माओं, वीर योद्धाओं एवं स्वतंत्रता सेनानियो की गौरव गाथा, सांस्कृतिक विरासत को एक ही स्थल पर पैनोरमा के रूप में समग्र व आकर्षक प्रस्तुति के साथ प्रदर्शित किया गया हैं। इस प्रकार राज्य में प्राधिकरण द्वारा लगभग 50 पैनोरमाओं का निर्माण करवाया गया है।  राज्य का गौरवशाली इतिहास आमजन व विद्यार्थियों तक पहुंचे इसके लिए राजस्थान धरोहर प्राधिकरण के अध्यक्ष ओंकारसिंह लखावत की ओर से समस्त जिला कलेक्टर, उपखंड अधिकारी, महाविद्यालय, विद्यालयों के प्राचार्य को पत्र लिखा गया है। इसमें शैक्षणिक भ्रमण के तहत छात्र-छात्राओं को राज्य के विभिन्न जिलों में प्राधिकरण द्वारा स्थापित स्मारक, पैनोरमा व संग्रहालय्यों को दिखाने के निर्देश दिए गए हैं। यह निर्णय पिछले माह पर्यटन विभाग की समीक्षा बैठक के दौरान माननीय मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा  के दिशा निर्देशानुसार युवा पीढ़ी को राजस्थान की गौरवशाली ऐतिहासिक विरासत से रूबरू करवाने के लिए कार्य योजना बनाई गई है। प्राधिकरण के अध्यक्ष लखावत ने बताया कि राजस्थान धरोहर प्राधिकरण द्वारा नागौर जिले के मेड़ता में भक्त शिरोमणि मीराबाई पैनोरमा ,खरनाल में वीर तेजाजी महाराज ,नागौर में वीर अमरसिंह राठौड़ व पीपासर में गुरु जंभेश्वर भगवान का दिव्य पैनोरमा बनाया गया है। इसके अलावा राज्य के लगभग सभी जगह पर इसी प्रकार के  पैनोरमा का निर्माण किया गया है। इन स्थलों पर विद्यार्थी प्रत्यक्ष साक्षात होकर अपने आप को गौरवशाली महसूस कर रहे हैं।
      पूनम चोयल, उपखंड अधिकारी मेड़ता ने बताया कि उपखंड स्तरीय पर्यटन विकास समिति मेड़ता द्वारा संचालित भक्त शिरोमणि मीराबाई पैनोरमा में अब तक लगभग बीस लाख देसी विदेशी पर्यटकों ने अवलोकन किया है जो कि हम सभी के लिए गौरव की बात है। मेड़ता में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पैनोरमा में समय-समय पर कई प्रकार के संस्कृति से जुड़े हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करवाए जा रहे हैं। साथ ही मेड़ता ब्लॉक स्तर के सभी विद्यालयों के विद्यार्थियों के ज्ञानवर्धन के लिए के लिए आमंत्रित किया जा रहा है। जिससे बच्चों को मीराबाई का इतिहास जानने का अवसर मिलेगा।
      भक्त शिरोमणि मीराबाई पैनोरमा के प्रबंधक एवं इतिहासकार नरेंद्रसिंह जसनगर ने बताया कि राजस्थान धरोहर प्राधिकरण (राजस्थान सरकार) की महत्वपूर्ण परियोजना के तहत
राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर एवं विरासतों के संरक्षण, संवर्धन एवं बिसरती निधि को पुर्नजीवित करने, आम जनजीवन को प्रेरणा देने वाले स्थलों, स्मारकों, प्राचीन वस्तुओं को संवर्द्धित, संरक्षित करने व प्रेरणादायी जीवन को परिदृश्य, संग्रहालय, गैलेरिज एवं अन्य दर्शनीय माध्यमों से स्थायी प्रकृति के कार्य करवाना एवं पर्यटन, तीर्थाटन के लिए विकसित करना, प्रदेश में कला, संगीत, भाषा एवं साहित्य के उत्थान की दिशा में कार्य करना। मूर्ति, शिल्पकला, मेलों, सभ्यता, खानपान, वस्तुशिल्प, स्थापत्यकला, तीर्थस्थलों, प्राकृतिक स्थलों, झीलों आदि के संरक्षण एवं विकास कार्य करवाने आदि उद्दश्यों की पूर्ति हेतु राजस्थान सरकार द्वारा राजस्थान धरोहर प्राधिकरण का गठन किया गया है। प्राधिकरण द्वारा राज्य के प्रत्येक संभाग, जिलों में संत महात्मा, लोक देवी देवताओं के पैनोरमाओं की स्थापना की गई है जिससे आमजन को अपना गौरवशाली इतिहास से रूबरू करवाना है।
इसके तहत नागौर जिले में चार प्रमुख स्थानों क्रमशः भक्त शिरोमणि मीराबाई (राव दूदागढ़) मेड़तासिटी, गुरु जम्भेश्वर भगवान, पीपासर, लोकदेवता तेजाजी महाराज, खरनाल व वीर अमरसिंह राठौड़, नागौर में पैनोरमाओं का निर्माण करवाया गया है।

भक्त शिरोमणि मीराबाई पैनोरमा, मेड़तासिटी (नागौर)
भक्ति साहित्य में मीराबाई का नाम अग्रणीय है। मीरां ने कठोर साधना से भगवान एवं भक्त के एक रस होने के भाव को परिलक्षित किया हैं। मीरा जोधपुर के संस्थापक राव जोधा की प्रपौत्री, मेड़ता के संस्थापक राव दूदा की पौत्री तथा कुँवर रतनसिंह की पुत्री थी। पूर्व संचित पुण्यों के कारण बाल्यकाल से ही भक्ति में लीन रहती जीवन पर्यन्त गाती रही ‘‘मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई’’। इनका विवाह मेवाड़ के राणा सांगा के ज्येष्ठ कुँवर भोजराज के साथ हुआ था। मगर आकस्मय भोजराज का निधंन हो जाने के बाद जब राणा विक्रम मेवाड़ के शासक बने तो उन्होंने मीरा को भक्ति पथ से अलग करने के लिए कई प्रयास किये लेकिन इनकी सभी योजनाएँ प्रभु कृपा से विफल रही। अन्ततः मीरा ने मेवाड़ को छोड़ दिया और मेड़ता, पुष्कर, जयपुर होती हुई वृन्दावन पहुँची। कुछ समय तक यहां अन्तस में भक्ति रस की धारा बहाती रही। इसके बाद अन्य जगहों पर स्थित अपने प्रभु श्री कृष्ण के मंदिरों के दर्शन करती हुई अन्ततः द्वारका पहुँची और अपने आराध्य रणछौड़नाथ (द्वारकाधिश) की मूर्ति में सशरीर समाकर भक्ति निहित शक्ति को उजागर कर सभी को विस्मित कर दिया। राजस्थान सरकार के राजस्थान धरोहर प्राधिकरण द्वारा अपनी महत्वपूर्ण परियोजना के तहत भक्त शिरोमणि मीराबाई की जीवनी को स्थाई बनाने के लिए मीरा नगरी मेड़तासिटी के मध्य में स्थित 15वीं सदी में निर्मित राव दूदागढ़ भवन में मीरां की बाल सुलभ क्रीड़ाओं एवं आध्यात्मिक साधना के शाश्वत प्रतीक इस भवन का जीर्णोद्धार करके आमजन के समक्ष मीरां को समग्र रूप से प्रस्तुत करने के लिए सन् 2008 में  महत्वपूर्ण यह पेनोरमा स्थापित किया गया है। जिसमें मीराबाई  के जीवनवृत्त से संबंधित सभी प्रमुख घटनाओं को मूर्तियों, पैनल, तस्वीरों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। इस पेनोरमा का संचालन उपखण्ड स्तरीय पर्यटन विकास समिति मेड़ता द्वारा किया जा रहा है।
राजस्थान के मध्य नागौर जिला अन्तर्गत आने वाला मेड़ता पौराणिक एंव ऐतिहासिक नगर रहा है। ज्ञान, भक्ति व शक्ति की त्रिवेणी रहे मेड़ता को धार्मिक, पर्यटन व दर्शनीय स्थलों का नगर कहा जाता है। यहां अनेक देवी-देवताओं, सुफी संतों-महात्माओं के आस्था स्थल के साथ स्थापत्यशिल्प की छतरीयां, हवेलिया, बावड़िया व जलाशय मौजूद है। मेड़ता में भगवान श्री चारभुजानाथ एवं मीराबाई मंदिर के अलावा जैन मंदिर, परनामी सम्प्रदाय का प्रमुख मंदिर, हाफिज शाह की दरगाह, शाही जामा मस्जिद, मालकोट दुर्ग, मीरंा महल, विष्णु सरोवर व कुण्डल सरोवर, दूदा सागर, डांगोालाई, देवरानी नाड़ी, गणेश नाड़ा सहित कई प्रमुख पर्यटन स्थल है। जिनको देखने प्रतिदिन दूर-दराज से श्रद्धालु व पर्यटक यहां आते है।
मेड़ता के आस-पास बुटाटी धाम, भंवाल माताजी मंदिर, मेड़ता रोड़ स्थित भगवान पार्श्वनाथ एवं ब्राह्मणी माताजी मंदिर, पाडूंका माताजी मंदिर, परसाराम महाराज मंदिर, अन्तराष्ट्रीय रामस्नेही सम्प्रदाय पीठ रेण, महादेव मंदिर डांगावास, जसगनर, थांवला, टेहला, साहित कई गांवों में जन-आस्था व पर्यटन स्थल मौजूद है।

गुरु जम्भेश्वर पेनोरमा
पीपासर, जिला-नागौर
साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक गुरु जाम्भोजी, विश्नोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं। इनका जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी वि.सं. 1508 (सन् 1451 ई.) को नागौर जिले के ग्राम पीपासर में श्री लोहट जी पंवार एवं माता हंसा देवी के यहां हुआ। ये अपने पिता की इकलोती संतान थे। सात वर्ष तक मौन रहकर इन्होंने बाल लीला का कार्य किया। वे बाल्यावस्था में कुछ ऐसे कार्य कर देते थे जिसे देखकर लोक चकित रह जाते थे।


ये बाल्यकाल से ही आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर हो गये एवं आजीवन ब्रह्मचार्य का पालन किया। जाम्भोजी एक महान् संत होेने के साथ ही समाज सुधारक भी थे।
इन्होंने तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों व आडम्बरों के विरूद्ध जनजागरण किया। पर्यावरण संरक्षण के प्रणेता, वन्य जीव प्रेमी, जाम्भोजी अहिंसा के प्रबल समर्थक थे। इन्होंने हरे वृक्षों की कटाई न करने का मूल मंत्र दिया।
जाम्भोजी ने विश्नोई पंथ की स्थापना कर उनतीस नियमों की आचार संहिता प्रवर्तित की। गुरु जाम्भोजी के ‘सबदों-उपदेशों’ के संग्रह का नाम ‘सबदवाणी’ है जिसमें 123 सबद एवं कुछ मंत्र हैं। गुरु जाम्भोजी के उपदेशों से प्रभावित होकर मल्लू खां ने मांस खाना छोड़ दिया और कर्नाटक नवाब शेख सद्दों ने गौ-हत्या बन्द करवायी।


गुरु जाम्भोजी की प्रेरणा से विश्नोई पंथ के लोग अपने प्राण देकर भी हरे वृक्षों और जीवों की रक्षा करते हैं, इस हेतु सन् 1730 को जोधपुर जिले के खेजड़ली ग्राम में विश्नोई समाज के 84 गांवों के 363 लोगों ने वृक्षों की कटाई रोकने के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। आज भी विश्नोई महिलाएं हिरण के शावकों और बछड़ों का पालन-पोषण अपनी संतान की तरह करती हैं।
राज्य सरकार ने राजस्थान धरोहर प्राधिकरण, जयपुर के माध्यम से इनके जीवन चरित्र, गरीबों की सहायता, प्रकृति संरक्षण, वन्यप्रेम, जीव मात्र के प्रति अहिंसा भाव, कुरीतियों के निवारण एवं प्ररेणादायी घटनाओं का दृश्यावलोकन करवाने हेतु पीपासर, नागौर में भव्य पेनोरमा का निर्माण करवाया है जो गुरु जाम्भोजी (जम्भेश्वर जी) को जानने का उत्तम स्थल है।

लोक देवता वीर तेजाजी पेनोरमा
खरनाल, तहसील-मूण्डवा, जिला-नागौर
लोकदेवता वीर तेजाजी राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, गुजरात, उत्तरप्रदेश सहित सम्पूर्ण उत्तर भारत में वीर महापुरूष, वचनपालक, गौरक्षक, समाज सुधारक एवं सर्पों के देवता के रूप मंे पूजे जाते हैं। इनका जन्म माघ शुक्ला चतुर्दशी वि.सं. 1130 (1073 ई.) को नागौर जिले के खरनाल गाँव में धोलिया गोत्र के किसान पिता ताहड़देव जी एवं माता राम कुंवरी सोढ़ी जी के यहां हुआ। इनके पिता के स्वर्गवास पश्चात् इनका पालन-पोषण एवं अस्त्र-शस्त्र संचालन की शिक्षा दादा बोहितराज तथा इनकी शिक्षा-दीक्षा ननिहाल पक्ष के कुलगुरु मंगलनाथ एवं नाना दूल्हणजी ने पूर्ण करायी।
बाल्यकाल में ही इनका विवाह पनेर गाँव के रायमल जी जाट की बेटी पेमल से हो गया था। ये लीलण घोड़ी पर सवार होकर अपनी पत्नी पेमल को लेने पनेर पहुँचे। इनकी पत्नी की अनन्य सहेली लाछा गुर्जरी के गौवंश को लुटेरे बलपूर्वक अपहरण कर ले जा रहे थे। लाछा गुर्जरी के आग्रह पर इन्होनें गौवंश को लुटेरों के चंगुल से छुड़वाया। लोक कथानुसार गायों को छुड़ाने जाते वक्त श्री तेजाजी ने रास्ते में एक जलते हुए नाग को अपने भाले की नोंक से अग्नि से बाहर निकालकर बचाया। इससे नाग क्रोधित होकर तेजाजी को डसने के लिए अतुर हो गया। इस पर तेजाजी ने वचन दिया कि पहले मुझे गौवंश को बचाने जाना है। उसके पश्चात् मैं यहां पुनः उपस्थित हो जाऊँगा। अपने वचन पालनार्थ स्वयं नाग देवता के पास जाकर, अपने आपको डसवा लिया। लोकदेवता तेजाजी के गौरक्षा हेतु शौर्यपूर्ण बलिदान एवं नाग देवता को दिये गये वचन की पालना कर, इन्होंने लोकजीवन में साहस, गौरक्षा, दया, वचन प्रतिपालन जैसे महान् गुणों की प्रतिष्ठित किया। वचन प्रतिपालन हेतु अपने प्राणोत्सर्ग किये जाने के कारण ये जन-जन के लोकपूज्य देवता बन गये। सम्पूर्ण भारत में भाद्रपद शुक्ला दशमी को तेजा दशमी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन तेजाजी के थानों पर जगह-जगह मेले लगते हैं।
राज्य सरकार ने वीर तेजाजी के जीवन चरित्र, प्रेरणादायी प्रसंगों व घटनाओं का दृश्यावलोकन करवाने हेतु राजस्थान धरोहर प्राधिकरण, जयपुर के माध्यम से खरनाल (नागौर) में भव्य पेनोरमा का निर्माण करवाया है। यह पेनोरमा श्रद्धालुओं के लिए वीर तेजाजी के जीवन से प्रेरणा लेने का श्रेष्ठ स्थान है।

वीर अमरसिंह राठौड पेनोरमा
नागौर

वीर अमरसिंह को राजस्थान में शौर्य, स्वाभिमान एवं त्याग का प्रतीक माना जाता है। आज अमरसिंह भले ही हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन उनका समर्पण आज भी हमें प्रेरणा देता है। रचनाधर्मियों ने उनके स्वाभिमान और त्याग से प्रेरित होकर उन पर अनेक प्रेरणादायक काव्यों की भी रचना की है जो यहां के लोक जनमानस में लोकप्रिय हैं।
अमरसिंह का जन्म पौष शुक्ल एकादशी वि.सं. 1670 (12 दिसम्बर, 1613) को जोधपुर के महाराजा गजंिसंह जी एवं माता मनसुखदे सोनगरी के यहां हुआ। ये बचपन से ही अत्यधिक साहसी, निडर, स्वाभिमानी, पराक्रमी व वीर योद्धा थें अमरसिंह राठौड़, मुगलों के शाही दरबार में अपनी सेवाएँ देने लगे। इन्हें प्रारंभ में 2 हजार पैदल एवं 1300 घुड़सवार सैनिकों का मनसब प्राप्त था। मुगलों की शाही सेना में बादशाह शाहजहां के आदेशानुसार कई सैन्य अभियानों में भाग लेकर इन्होंने अपने शौर्य, पराक्रम व शूरवीरता से मुगल दरबार में अपना विशेष स्थान बनाया। इनके बढ़ते प्रभाव से मीर बख्शी सलावत खां, जो शाहजहां के साले भी थे, इनसे द्वेष रखने लगे एवं अवसर पाकर इन्हें नीचा दिखाने के लिए शाहजहां से इनकी शिकायतें करने लगे। एक बार अमरसिंह राठौड़ नागौर आये थे। स्वीकृत अवकाश से अधिक समय लग जाने पर जब अमरसिंह शाही दरबार में आये तो मीर बख्शी सलावत खां ने इनकी गैर हाजरी का प्रकरण दरबार में रखा और इन्हें अपमानित कर गंवार कह दिया। स्वाभिमानी अमरसिंह यह अपमान बर्दाश्त नहीं कर सके और भरे दरबार में सलावत खां को मौत के घाट उतार दिया। गंग कवि ने इस प्रकार इस घटना का वर्णन किया –
उण मुखतै गगौ कहयो, इण कर लई कटार। वार कहण पायो नही, जमदड़ हो गयी पार।। 
इस घटना से शाही दरबार में अफरा-तफरी मच गयी, किले के सारे दरवाजे बन्द कर दिये जाने पर अमरसिंह घोड़े सहित दुर्ग से छलांग लगाकर नागौर पहुंच गये। शाहजहां से सुलह की पहल के तहत अर्जुन गौड़ जो रिश्ते में अमरसिंह का साला था, अमरसिंह को शाही दरबार में लाये। दरवाजे में प्रवेश के समय अवसर पाकर दगाबाज अर्जुन गौड़ ने अमरसिंह राठौड़ की पीठ में तलवार घौंप दी। घायल अवस्था में भी अमरसिंह अनेक शाही सैनिकों को मौत के घाट उतार व अर्जुन गौड़ का कान काटकर स्वाभिमानी योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गये। अनेक वीर योद्धाओं ने बल्लू चम्पावत के नेतृत्व में अद्धुत वीरता का परिचय देते हुए अमरसिंह राठौड़ की पार्थिव देह को सुरक्षित सम्मानपूर्वक नागौर पहुंचाया। शाही सेना से मुकाबला करते हुये, बल्लू चाम्पावत, भावसिंह कूंपावत, गिरधर व्यास जैसे अनेक योद्धाओं ने प्राणोत्सर्ग किया। स्वाभिमान, साहस, शौर्य की यह अद्भुत व अद्वितीय घटना थी। जिसे प्रदर्शित करने हेतु राज्य सरकार ने राजस्थान धरोहर प्राधिकरण, जयपुर के माध्यम से नागौर में वीर अमरसिंह राठौड़ के भव्य पेनोरमा का निर्माण करवाया है।

Aapno City News
Author: Aapno City News

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