
रियां बड़ी के झिटियां गांव में सामाजिक समरसता की मिसाल पेश करते हुए पुना राम ककंडा़वा के परिवार ने दलित समाज को अनूठे अंदाज में सम्मान दिया
झिटिया गांव में पुना राम ककंडा़वा के परिवार ने सामाजिक समरसता की एक अनूठी परंपरा देखने को मिली. जहां जातिवाद और छुआछूत जैसी कुरीतियों से परे हटकर ककंडा़वा परिवार ने पूरे सम्मान और सत्कार के साथ वाल्मीकि समाज के लोगों को अपने घर बुलाया और भोजन कराया.

इसके बाद फिर पूरे गांव ने अन्न ग्रहण किया. यह आयोजन पुना राम जी ककंडा़वा की पुण्य स्मृति में किया गया था. पुना राम जी ककंडा़वा के परिजनों ने बताया कि उन्होंने जीवन भर सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जागरूकता फैलाने का कार्य किया था.
*इस तरह किया दलितों का सम्मान*
वाल्मीकि समाज का भव्य स्वागत:स्वर्गीय पुना राम के पुत्र रामपाल ,रामनिवास ,सावल राम शुभकरण ,सिताराम और पूरे ककंडा़वा परिवार ने यह आयोजन कर सामाजिक एकता की एक नई मिसाल पेश की. आयोजन के दौरान वाल्मीकि समाज के लोगों को पूरे मान-सम्मान के साथ उनके घर से गाजे-बाजे के साथ लाया गया. रास्ते में उनके स्वागत के लिए गलीचा बिछाया गया और पुष्प वर्षा की गई. उन्हें समाज के घरों में बुलाकर चरण धोकर सम्मानित किया गया और फिर अपने हाथों से भोजन कराया गया. इसके बाद पूरे गांव ने भोजन ग्रहण किया।

अनूठी मिसाल : आभूषण और नकद राशि दे की विदाई: वाल्मीकि समाज के लोगों को न केवल भोजन कराया गया, बल्कि ककंडा़वा परिवार ने उन्हें सोने-चांदी के आभूषण और नकद राशि देकर ससम्मान विदाई भी दी. इस मौके पर रामनिवास ककंडा़वा ने कहा कि उनके पिता पुना राम ककंडा़वा ने हमेशा छुआछूत और जातिगत भेदभाव से दूर रहकर सामाजिक समरसता के लिए कार्य करते रहे थे. ऐसे में उनकी इसी सोच को आगे बढ़ाने के लिए इस परंपरा को फिर से शुरू किया गया है.

सामाजिक समरसता के लिए जातिवाद नुकसानदायक: रालोपा युवा नेता विजय पाल राव और ग्रामीणों ने जातिवाद को समाज के लिए जहर बताते हुए कहा कि राजनीति में जातिवाद हावी होने से सामाजिक समरसता को नुकसान पहुंचा है. उन्होंने कहा कि सनातन धर्म की परंपराओं को बनाए रखना जरूरी है, ताकि समाज में एकता और भाईचारा बना रहे. स्वर्गीय पुना राम ककंडा़वा का जन्म चौधरी हरि राम ककंडा़वा के परिवार में हुआ था. वे बचपन से ही सामाजिक कार्यों में रुचि रखते थे और जीवनभर सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जागरूकता फैलाने में लगे रहे. उनका वाल्मीकि समाज व दलित समाज के लोगों से विशेष लगाव था और वे हमेशा उन्हें अपने पास बैठाकर बातचीत करते थे. उनके इसी संस्कार को आगे बढ़ाते हुए उनके परिवार ने इस परंपरा को फिर से जीवित किया, जो पिछले 35 वर्षों से जारी रहा.


Author: Aapno City News







